दिन ७ अक्टूबर, २०२३, सुबह के ६ बज रहे थे अचानक इजराइल का आसमान बारूदी तिरों (रॉकेटो) से दहल उठा। कुछ तिरों को तो हवा में हि इजराइल के सुरक्षा कवच “आयरन डोम” ने नष्ट कर दिया पर इन बारूदी तिरों की संख्या ५००० से भी अधिक थी जिसे “हमास” नामक एक बिहड़ दैत्य समूह के दैत्यों ने केवल २० मिनट के अंदर छोड़ा था अत: कुछ इजराइलियों के घरों पर भी गिर पड़े और उन्हें जान माल का भारी नुकसान उठाना पड़ा।
अभी आसमान से बारूदी तिरों का कहर बरस हि रहा था की, जमीन और जल मार्ग से दैत्यों के एक बहुत बड़े समूह ने इजराइल के अंदर प्रवेश कर लिया और लूटपाट तथा नरसन्हार का एक भयानक खुनी खेल खेलना शुरु कर दिया। इन दैत्यों ने अपने मजहबी कानून के अनुसार इजराइली महिला सुरक्षा कर्मियों की पहले अस्मत लूटी फिर उन्हें जान से मार दिया और वस्त्रहीन कर चौराहों और सड़को पर उनके बेजान शरीर को घुमाना शुरु कर दिया।
इन दैत्यों ने छोटी छोटी टुकड़ियाँ बनाई और पूरे इजराइल में घुस गये और प्रत्येक स्थान पर अपने मनहूस और नापाक उपस्थिति का एहसास कराते हुए मौत बाँटना शुरु कर दिया। आज पूरा इजराइल इन दैत्यों के कब्जे में है। ये दैत्य कब और कंहा से निकलकार किसका खून पी लेंगे किसी को नहीं पता, किसी को कुछ नहीं पता।
यहूदियों के प्रति ईसाइयों और इसलमिस्टो की नफ़रत किसी से छिपी नहीं है। पूरे विश्व में जंहा जंहा ईसाई और मुस्लिम आबादी है वंहा वंहा यहूदियों का सफाया किया गया, उन्हें प्रताड़ित किया गया और अपमानित किया गया। भारत हि एक मात्र ऐसा देश है, जंहा यहूदियों को पुरा मान और सम्मान प्राप्त होता है और उन्हें एक आम भारतीय के सभी अधिकार प्रदान किये गये हैँ। हिटलर को कौन भूल सकता है, उसने अपने शाशनकाल में लगभग ६० लाख यहूदियों की हत्या करवाई थी।
प्रश्न ये है मित्रों की आखिर यहूदियों में से हि ईसाई और इस्लाम के माननेवाले पैदा हुए फिर यहूदियों से इतनी नफ़रत ये लोग कैसे कर सकते हैँ। ईसाई मजहब का प्रवर्तक जिसस स्वयं एक यहूदी था। अरब में भी यहूदियों के हि कबिले थे, फिर मूसा (मोज़ेस) (जो यहूदियों के पैगंबर थे) को अपना पैगंबर मानने वाले ईसाई और इस्लाम को मानने वाले यहूदियों से इतनी नफ़रत कैसे कर सकते हैँ।
खैर इजराइल के यहूदी तो शांतिपूर्ण ढंग से अपने सबसे बड़े उत्सव का हर्ष और उल्लास के साथ आनंद ले रहे थे परन्तु इन आतंकवादी दैत्यों ने उनकी खुशियां छीन ली।
आइये देखते हैँ इजराइल की नींव कैसे पड़ी।
मित्रों पहले ईसाइयत और फिर इस्लामियत ने मिलकर यहूदियों से उनके पूर्वजों की धरती येरुशलम की धरती छीन ली। यहूदियों के टेम्पल पर कब्जा कर लिया और अपना दावा ठोक दिया। यहूदी वर्षो तक अलग अलग देशो में अपमानित जीवन जीते रहे।
इजरायल की नींव कोई एक दिन में नहीं पड़ी। ज्ञान, संपदा, बुद्धि, कौशल और संस्कृति से भरपूर यहूदियों ने चाहे कितनी भी सफलता और सम्मान दुनिया में आज हासिल कर ली हो, पर उन्होंने वो भी समय देखा है जब उनकी यह सफलता उनके लिए किसी काम नहीं आई, सम्पूर्ण विश्व में (भारत को छोड़कर) यहूदियों को जूतों की नोक पर रखा गया। ईसाई और मुस्लिम मजहब के लोगों ने उनके साथ कीड़े मकोड़ो से भी बद्तर व्यवहार किया। यहूदियों ने लूट, प्रताड़ना, हत्या, बलात्कार, मजदूरी जैसे कई प्रताड़नाओं को झेला।
द्वितीय विश्व युद्ध खत्म हुआ, तब दुनिया के सामने यहूदियों के साथ हुए राक्षसीय दुर्व्यवहार की पूरी कहानी सामने आई। सम्पूर्ण विश्व में फैले यहूदी धीरे धीरे परन्तु अनवरत अपने पूर्वजों की भूमि में रहने के लिए आने लगे जो उस समय फिलिस्तीन का हिस्सा हुआ करता था। जब अंग्रेजों ने तुर्किये से अंतिम खलीफा ओटमोन एम्पायर को मार भगाया तो इस क्षेत्र पर उनका कब्जा हो गया अत: उन्होंने ने भी यहूदियों को उनके पूर्वजों की धरती पर बसने से नहीं रोका।
सम्पूर्ण विश्व में अपने सभी व्यवसायों को छोड़कर यहूदी अपने पूर्वजों की धरती पर लौट आये और इन्होंने अपनी भाषा “हिब्रू” को पुन: स्थापित करते हुए, स्वयं को स्थापित करना शुरु कर दिया। और फिर आया दिनांक १४ मई १९४८ का दिन, जब संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से ब्रिटेन के राज के अंतर्गत आने वाले इस राज्य के एक हिस्से को यहूदियों के देश इजराइल के रूप में मान्यता दे दी और शेष हिस्सा फिलिस्तीन कहलाया। येरुशलम तीनो मजहब के लोगों के लिए आवश्यक समझा गया अत: इजराइल का हिस्सा होने के पश्चात भी वो तीनो अब्राह्मीक मजहबो के लिए ग्राह्य बना दिया गया।
मित्रों वैसे तो इजरायल की आबादी मात्र एक करोड़ से भी कम है लेकिन इजरायल के वैज्ञानिक, उनके मशीन, उनके आयुध, उनकी टेक्नोलॉजी आज विश्वभर में प्रसिद्ध है। आपको बताते चलें की इजरायल के अस्तित्व में आने के लगभग १८-२० वर्ष के पश्चात हि, उसे कमजोर और असहाय समझकर फिलिस्तीन का साथ देते हुए उसके पड़ोस के पांच देशों ने वर्ष १९६७ में आक्रमण कर दिया। मित्रों इन अरबी लोगों को नहीं पता था की यहूदियों ने अपने भूतकाल से सबक लेते हुए इन १८-२० वर्षो में इतने गोला बारूद और आयुध नई तकनीकी का निर्माण कर लिया था, जिसकी वो कल्पना भी नहीं कर सकते थे।
और अकेले इजराइल ने इन पांच अरबी मुल्को के मुंह पर ऐसी कालिख मली की आज तक ये उस कालिख से छुटकारा प्राप्त नहीं कर पाए हैँ। ये युद्ध इजराइल ने अकेले जीत लिया वो भी केवल ६ दिनों में, इसे “6th Day War” ke नाम से जाना जाता है। इस युद्ध का नतीजा हुआ कि इजरायल ने सिनाई प्रायद्वीप, गाजा, पूर्वी यरुशलम, पश्चिमी तट और गोलाना की पहाड़ी पर अपना कब्जा जमा लिया।
आइये देखते हैँ की आखिर क्या है हमास?
हमास फिलिस्तीन का एक इस्लामिक चरमपंथी अर्थात आतंकवादी संगठन है। वर्ष १९८७ में शेख अहम यासीन ने इस आतंकवादी संगठन की नींव रखी थी। तब से हमास फिलिस्तीनी इलाकों से इजरायल को हटाने के लिए आतंकी हमले इजराइल पर कर रहा है। हमास को गाजा पट्टी से ऑपरेट किया जाता है। इजरायल को बतौर देश हमास मान्यता नहीं देता है और इस पूरे इलाके में एक इस्लामी राष्ट्र की स्थापना करना चाहता है। हमास के पास लगभग ५० हजार से अधिक आतंकी हैँ। अत्याधुनिक मिसाइलें, बम, रॉकेट और अन्य प्रकार के बंदूको से इस आतंकी संगठन का खजाना भरा हुआ है।
अपनी स्थापना के वर्ष के पश्चात वर्ष १९८८ में हमास एक चार्टर जारी करते हुए अपने मनहूस उद्देश्य के साथ विश्व के सामने आया और अपने चार्टर में इजरायल और यहूदियों को स्पष्ट घोषणा कि यहूदी समुदाय और इजरायल को पूर्णतया नष्ट करने के पश्चात हि हमास का आतंकी अभियान थमेगा। वैसे यह हमास भी दो हिस्से में बाँटा गया है, एक भाग का दबदबा वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी पर है, वहीं दूसरे भाग को वर्ष २००० में शुरू किया गया, इसकी शुरुआत के साथ ही इजरायल पर होने वाले आतंकी हमलों की बाढ़ सी आ गयी।
मित्रों जैसा की मै पूर्व में हि बता चुका हुँ कि येरूशलम यहूदी, इस्लाम और ईसाई तीनों मजहबी कौमों के मानने वालों के लिए पवित्र शहरों में से एक है। यंहा पर लगभग ३५ एकड़ में फैला एक परिसर है, जिसे यहूदी टेम्पल टाउन कहते हैँ।मुस्लिम इस परिसर को अल-हरम-अल-शरीफ कहते हैं, यहां स्थित अल-अक्सा मस्जिद को मक्का मदीना के बाद इस्लाम में तीसरा सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। यहूदियों के अनुसार इस मस्जिद को उनके टेम्पल को तोड़कर बनाया गया है। वहीं ईसाइयों का मानना है कि यहीं ईसा मसीह को सूली पर लटकाया गया था, इसके बाद वो यहीं अवतरित हुए थे। इसी के भीतर ईसा मसीह का मकबरा है। यहूदियों का सबसे स्थल डोम ऑफ द रोक भी यहीं स्थित है। ऐसे में इस स्थान को लेकर वर्षों से यहूदियों और फिलिस्तिनियों के बीच विवाद आज भी जारी है।
खैर हम सनातन धर्मी हो या ये यहूदी हम सभी इन आतंकी संगठनों के आतंक का शिकार रहे हैँ और हम सभी भारतवासी अपने यहूदी मित्रों के साथ हैँ। हम सभी यहूदी मित्रों के हर सुख दुख में भागीदार हैँ। ईश्वर से प्रार्थना करते हैँ कि इस बार इजराइल हमास को पूर्णतया नष्ट करके हि रुकेगा। हम भारतवासी हर मंच पर उसका साथ देने के लिए तैयार हैँ।
भारत और हर भारतवासी को सावधान रहने की आवश्यकता है, क्योंकि देश के भीतर बसे दुश्मन देश के बाहर के दुश्मनों से मिलकर इसी प्रकार का हमला कर सकते हैँ।
सावधान भारत।
जय हिंद।
जय इजराइल।