मैंने राहुल गाँधी के लिए ट्वीट किया, आधी रात घर पहुँच गई IB: मैंने इसे आपको बताने का फैसला किया है, क्योंकि मेरा चुप रहना साहस की मंदी होगी News To Nation

मेरे हॉल में लगी घड़ी का घंटा बोला टन टन टन… उसने बताया रात के 12 बज गए हैं। तारीख 25 दिसंबर की आ गई है। तभी मेरे घर की बेल भी बजी टन टन टन… सोचा कोई भूला-भटका यीशु के अवतरण की बधाई देने आ गया होगा। या फिर कोई सेंटा ही गिफ्ट लेकर अव​तरित हो गया हो। दरवाजा खोला तो सामने हाड़-मांस के दो इंसान थे। कहा हम IB से हैं। आपसे पूछताछ करनी है।

मिथिला के अगले कश्मीर बनने की आशंका को लेकर आए दिन ट्वीट करता रहता हूँ। सोचा मेरी आशंकाओं को लेकर भारत सरकार चिंतित हुई होगी। इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा में इनपुट लेने के लिए आईबी वालों को भेज दिया होगा। लेकिन ये क्या उन्होंने तो मेरे सामने सोशल मीडिया के तीन पोस्ट रख दिए। उनके बारे में पूछने लगे। आगे बढ़ने से पहले जान लीजिए कि उन पोस्ट में क्या है?

राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा शुरू होने के बाद से मैंने कई ट्वीट किए हैं। इनमें से जिन तीन ट्वीट के प्रिंट आउट मेरे सामने रखे गए वे अलग-अलग तारीखों को किए थे। एक में मैंने टीशर्ट की कीमत पर उठते सवालों को लेकर राहुल गाँधी का बचाव किया है, लेकिन लगे हाथ इस यात्रा से उठने वाली आशंकाओं के बारे में भी बताया है। दूजे में मैंने कहा है कि मुझे उम्मीद नहीं थी कि राहुल गाँधी इतने दिन पैदल चलेंगे। इसके लिए मैंने उनकी सराहना की अपील की थी। तीसरा ट्वीट मैंने उन लोगों को संबोधित कर रखा है, जो राहुल गाँधी के नशे में लड़खड़ाने की बात कर रहे थे।

आईबी वाले जानना चाहते थे कि दो-दो रुपए पर ट्वीट करने वाला मेरे जैसा आईटी सेल का मनरेगा मजदूर बीच-बीच में लाइन से हटकर सोशल मीडिया पर कुदाल चलाने का कितना लेता है। उन्होंने इससे अधिक भुगतान का ऑफर दिया। कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग के जरिए तिहाड़ में बंद कट्टर ईमानदार मंत्री यह भुगतान करेंगे। मैं चकराया। जिस आईबी, ईडी, सीबीआई को सब मोदी का तोता कहते हैं, वह तिहाड़ी मंत्री से क्यों पेमेंट का ऑफर दे रहा। सोचते-सोचते मैं लोकतंत्र की हत्या की मुनादी कर पाता, उससे पहले ही सामने बैठे हाड़-मांस के उन दो इंसानों ने मुझे रोका। कहा आप किस दुविधा में हैं। हम इंटेलीजेंस ब्यूरो वाले आईबी नहीं हैं, इंटरनल ब्रॉडकास्टिंग वाले आईबी हैं। यू नो आईबी। वही जिसका हवाला केजरीवाल ​जी गुजरात इलेक्शन में देते थे।

अचानक से 3 साल की बेटी का लात मुँह पर लगा। आँख खुली। न कोई आईबी थी, न कोई ऑफर। कोई सेंटा भी न आया था। मैं खामखा सपने में सेंटी हुआ पड़ा था। भोर हुई तो सोचा किसी को ये बात न बताऊँगा। फिर याद आया कि रवीश कुमार अक्सर कहते हैं कि साहस की मंदी है। मैं ये न बताऊँगा तो दुनिया को कैसे पता चलेगा कि भारत का लोकतंत्र खतरे में है। मेरे सपनों से पाठक वंचित रह गए तो यह कैसे प्रमाणित होगा कि कोई तो इस देश में है जो मीडिया प्रहरी का काम कर रहा है। कोई तो है जिसे इस देश की सरकार नहीं झुका पा रही है। कोई तो है जिसका मैग्सेसे पर दावा बनता है। उस पर जयराम रमेश का ट्वीट भी बताता है कि साजिश चल तो रही ही है। भले सपनों में।


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