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Home » क्या सिर्फ़ सत्ता के लिए राष्ट्र-खंडन भी मान्य हैं? News To Nation

Editor's desk

क्या सिर्फ़ सत्ता के लिए राष्ट्र-खंडन भी मान्य हैं? News To Nation

NTN Staff
2 years ago
9 Min Read
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देश में हो रहे आए दिन दंगे इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण है की लड़ भिड़कर कर ही सही सत्ता कैसे हासिल की जाय? साल 2014 में जब स्वाभिमानी हिंदुओ के हाथ में सत्ता आई थी तब लगा था 800 साल बाद देश पहली पर राहत की सांस ले रहा है। ले भी क्यों ना आए दिन हो रहे है बॉम्ब विस्फोटों से छुटकारा जो मिल गया। वरना कभी हैदराबाद तो कभी बनारस तो कभी बंगलौर से मुम्बई तक दशहत के साए में जी रहा था। हजारों लोगो को अपनी जिंदगी से हाथ धोना पड़ा और ना जाने कितने मासूमों की जिंदगी नरक से भी बत्तर हो गई थी।

इस्लामिक जिहाद का परचम बुलंद था कभी भी कोई भी घटना सुनने को मिल जाती थी 2014 से पहले तक।हौसले बुलंद तो पशुपति से तिरुपति तक फैले लाल सलाम वालो का भी था। आए दिन नक्सलियों का आतंक देखने को मिल ही जाता था। 2014 से पहले स्थिति बहुत भयावह थी। 2014 के बाद इन सबने अपने योजनाओं में बहुत बदलाव किया। जिस काम को ये पहले खुलकर हथियारों के दम पर अंजाम देते थे उसमे बदलाव करते हुए इन्होंने आंदोलनों का सहारा लिया। मोदी जी के प्रधामंत्री बनते ही इस्लामिक जिहादियों की कब्र खुदनी शुरू हो गई थी और नक्सलवाद की कमर टूट गई। लाल जाल में ज्यादतर युवा वर्ग ही फंसता है।

कॉलेज और विश्वविद्यालयो में ही ब्रेन वाश की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। फरवरी 2016 में जेएनयू में “आजादी आजादी” के नारे लगना एक जीता जागता उदाहरण है। वामपंथी कन्हैया अब कांग्रेस में है खैर क्या फर्क पड़ता है वामी लोग कांग्रेस के जूठन पर ही तो पलते है। इस्लामिक जिहादी कहा शांत बैठने वाले थे उन्होंने ने भी नारा लगा गया ” भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्लाह” देश की न्यायिक व्यवस्था को चलाने वाले तथकतिथ साहब लोगो को भी नही छोड़ा गया “अफजल हम शर्मिंदा है तेरे कातिल जिंदा है”… वाह क्या खूब उमर खालिद सबका नेता बनकर निकल गया पूरा विपक्ष इन्हे अपने सर पर चढ़ा लिया था।

कुछ मुठ्ठी भर छात्रों और वामपंथी संगठनों ने विश्वविद्यालय की कीर्ति एवं शिक्षा के स्तर पर ऐसे आघात किए जिनको देशभक्ति के श्रेणी में तो कत्तई नहीं रखा जा सकता।जिस समय सारा देश सियाचिन के जांबाज शहीदों को श्रद्धांजलि दे रहा था उस समय जेएनयू में “भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी जंग रहेगी” तथा “अफजल हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल जिंदा है के नारे लग रहे थे।” आतंकी अफजल गुरु की बरसी मनाई जा रही थी। वहां पोस्टर लगे जहां जिनमें लिखा था – शहीद अफजल गुरु की शहादत की पहली बरसी पर स्मृति सभा जिसमें अरुंधती राय, प्रो. जगमोहन, सुजितो भद्र, जेएनयू के प्रो. एके रामकृष्णन के नाम भाषण देने वालों थे। डीएसयू के पोस्टरों में छापा गया कि कश्मीर के राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष को लाल सलाम।

देश की एकता और अखंडता को खुलेआम चुनौती दी जा रही थी। जहां कहीं भी देश में भारतीय सेना के विरुद्ध विद्रोही गतिविधियां हैं उन सब के समर्थन में जेएनयू में सेमिनार एवं प्रदर्शन आयोजित हो किए जाते रहे है विभिन्न संगठनों द्वारा। कश्मीर, असम ,मणिपुर और नागालैंड के विद्रोह संगठनों की उपस्थिति देखी जा सकती है। जो काम हथियारों और बंदूकों से नहीं हुआ उसे आसानी से “कलम” से अंजाम दिया जाने लगा है। सड़क पर निकल हल्ला मचाकर बवाल काटने वाली वाली राजनीति तो इनका प्रमुख हिस्सा है। पत्थरबाजी की घटनाएं कश्मीर में आम बात हो गई थी।

महिलाएं बच्चे सब शामिल थे इसमें। नौजवानों को तथाकथित वरिष्ठ सेकुलर पत्रकार लोग भटका हुआ बताने लगे थे। हद तो तब हो गई थी जब बुरहान बानी के एनकाउंटर होने पर उसे ये लोग हीरो बना दिए थे। 2016 में उड़ी हमला हो या 2019 का पुलावामा कांड कौन भुला सकता है जिसका मुंहतोड़ जवाब हमारी देश सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक करके लिया था। अब देखिए इसमें फेक नैरेटिव कैसे गढ़ा गया? सर्जिकल स्ट्राइक को फर्जिकल स्ट्राइक बोला गया विपक्ष द्वारा और एयर स्ट्राइक पर इन्होंने कहा कौवा चिड़िया मार पेड़ को मारा गया है…!

मतलब मोदी विरोध में अपने ही देश के सेना पर सवाल खड़े कर दिया था इन लोगों ने। सुरक्षाबलो पर बलात्कार का आरोप लगाना हो या बीएसएफ जवान का पतली दाल वाला नौटंकी सब साजिश का हिस्सा था। पूरी छवि बिगाड़ने की कोशिश की गई थी लेकिन पुलावामा हमले के बाद वही सीआरपीएफ के जवान इनके लिए राजनीतिक मुद्दा बन जाते है। लेकिन कोई गजवा ए हिंद फैलाने वाले मकसद किए गए हमले की आलोचना नही करता है। पुरे विपक्ष में किसी ने भी इस्लामिक जिहाद या आतंकवाद के खिलाफ एक शब्द नही बोला..!

2019 में सरकार बनते ही मोदी सरकार ने सबसे पहले तीन तलाक,फिर अगस्त में अनुच्छेद 370 और 35ए को हटा दिया और राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ जो सरकार के प्रमुख एजेंडो में से एक था। नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019, बोडो समझौता हो या ब्रू-रियांग समझौता सबमें सरकार को सफलता मिली। एक तरफ देश विरोधी एजेंडा जोर शोर से चल रहा था दूसरी तरफ से मोदी सरकार देशहित अपने सारे फैसले लेती रही।

बाकी 2019 अगस्त में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाए जाने पर पीडीपी के दो सांसदों नजीर अहमद लवे और एमएम फैयाज़ ने संसद में ही अपने कपड़े फाड़ दिए थे। पीडीपी के सांसदों द्वारा संसद में कपड़े फाड़ने पर सभापति वेंकैया नायडू ने दोनों सांसदों को सदन से बाहर भेज दिया था। इतना ही नहीं इन दोनों ने संविधान की प्रतिलिपि को भी फाड़ दिया था। एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 की कॉपी फाड़ दी थी इसको लेकर काफी हंगामा हुआ था। नागरिकता संशोधन अधिनियम से शुरू हुआ इस्लामिक जिहादियों और तथाकथित वामपंथियों का घिनौना खेल। सड़क पर उतर कर गंध मचाने की होड़ मची हुई थी।

यूपी में तो योगी आदित्यनाथ थे जो बुल्डोजर तैयार रखे हुए थे इसीलिए यहां मामला थम सा गया। लेकिन कृषि कानून को लेकर सड़क से लेकर संसद तक मचा भसड़ लालकिले पर खालिस्तानी झंडा टांग कर खतम हुआ। कांग्रेस और पूरा बस मोदी को हटाने में लगा हुआ हैं। चाहे जैसे बन पड़े उसके लिए चीन की ही सहायता क्यों न लेनी पड़ी? भारत चीन सीमा विवाद पर इनके नेताओ के बयान सुने जा सकते है। यहां भी इन्होंने ने सिर्फ जहर ही उगला है सेना के जवानों के लिए। उस समय के सीडीएस जनरल बिपिन रावत को सड़क का गुंडा तक बोल दिया जाता है। अग्निवीर मामले में ही देख लीजिए कुछ बचा है ही नही बताने और समझाने के लिए। जंगल में बंदूक चलाने वाले अब धरने में शामिल होते है क्योंकि जानते है इस सरकार में बंदूक उठाए तो ढेर कर दिए जाएंगे।

इसीलिए कलम को हथियार की तरह इस्तेमाल करने लगे है विदेशी मीडिया में बैठकर यही भारत विरोधी एजेंडा जोर शोर से चला रहे है। जो समाचार पत्रों के माध्यम से अपने विचारो द्वारा जहर घोल रहे है वो बहुत खतरनाक हैं। सरकार को भी चाहिए इन लोगो के खिलाफ आवश्यक करवाई करे। इन सबमें सरकार कही ना कही पूरी तरह सफल नही हो पाई है यहां ध्यान दे वरना घातक सिद्ध होगा।

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