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Reading: संविधान निर्माता ने बौद्ध धर्म अपनाया, इस्लाम क्यों नहीं? एक वामपंथी से एक सनातनी का शाश्त्रार्थ: भाग-१ News To Nation
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Home » संविधान निर्माता ने बौद्ध धर्म अपनाया, इस्लाम क्यों नहीं? एक वामपंथी से एक सनातनी का शाश्त्रार्थ: भाग-१ News To Nation

Editor's desk

संविधान निर्माता ने बौद्ध धर्म अपनाया, इस्लाम क्यों नहीं? एक वामपंथी से एक सनातनी का शाश्त्रार्थ: भाग-१ News To Nation

NTN Staff
3 years ago
11 Min Read
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हे मित्रों जैसा की आप जानते हैं कि, हमारे एक कम्युनिस्ट मित्र हैं, जो जन्म से तो सनातनी हैं पर कर्म से पुरे वामपंथी। ये मित्र सनातन धर्म की बुराई करने में असीम सुख का अनुभव करते हैं और बार बार किसी न किसी मुद्दे को लेकर हमसे चर्चा और परिचर्चा करने चले आते हैं। अबकी बार वो भारत रत्न बाबासाहेब को आधार बनाकर हमारे सनातन धर्म को निचा दिखाने का प्रयास करते हुए हमसे शाश्त्रार्थ करने आ धमके। 

हमारे वामपंथी मित्र ने बड़ी ही कुटिल मुश्कान के साथ बोला, धिक्कार हैं तुम्हारे धर्म पर जो बाबासाहेब अम्बेडकर जैसे महामानव ने उसे छोड़ दिया और यही नहीं, तुम्हारे धर्म में फैले पाखंड, छुआछूत, रूढ़िवादिता और अन्धविश्वास को लात मारकर उन्होंने “बौद्ध धर्म” स्वीकार कर लिया और यही नहीं उन्होंने ३ दिनों में हि ५ लाख लोगों को बौद्ध बना दिया।

हमने शांतिपूर्वक हमारे वामपंथी मित्र के आग उगलते और सनातन धर्म के प्रति नफ़रत को शब्दों का माध्यम से बाहर निकलकर वातावरण को दूषित करते हुए देखा और सुना फिर उनसे बड़े ही सरल शब्दों में पूछा “हे मित्र तुम सत्य कह रहे हो, भारत रत्न बाबासाहेब ने हिन्दू धर्म का त्याग कर दिया, परन्तु उन्होंने “बौद्ध धर्म” क्यों अपना लिया, वो तुम्हारी तरह मार्क्सवादी या लेनिनवादी या माओवादी वामपंथी क्यों नहीं बने?”

अब हमारे वामपंथी मित्र के पास इसका कोई उत्तर नहीं था, अत: उन्होंने अपनी ढीठता दिखाते हुए अपनी तीव्र पर कर्कश ध्वनि में कुटिल मुश्कान बिखेरते हुए कहा, ये ठीक है वो कम्युनिस्ट नहीं बने, पर इससे उस सत्य में तो कोई परिवर्तन नहीं हो जाता, “जो उन्होंने सनातन धर्म को छोड़ कर स्थापित किया”। हमने वामपंथी मित्र के भीतर के विषयुक्त भावनाओ को चिन्हित करते हुए स्वयं को नियंत्रित कर कहा “हे मित्र ये सत्य है कि उन्होंने सनातन धर्म अर्थात तुमहति दृष्टि में हिन्दू धर्म का त्याग करके “बौद्ध धर्म” को अपना लिया” अत: ये भी उतना ही सत्य है कि “उन्होंने हिन्दू धर्म का त्याग तो किया परन्तु ना तो कम्युनिस्ट बने, ना “इस्लाम” को स्वीकार किया ना “इसाई” मजहब को स्वीकार किया, जबकि हिन्दू विरोधी सभी ताकतें उनके समाज में बढ़ते कद और प्रभाव को देखकर अपनी ओर ले जाने के लिए प्रयासरत थे। हमारे वामपंथी मित्र ने एक बार पुन: कुटिल मुस्कान बिखेरा और बोले “तुम सनातनी सर्वप्रथम ये बताओ कि “बाबासाहेब ने सनातन धर्म छोड़ा या नहीं और छोड़ा तो तुम्हारे भेदभाव के कारण ही तो छोड़ा”।

हमने जन्म से सनातनी और कर्म से वामपंथी मित्र से अनुग्रह करते हुए कहा कि “हे वामपंथी मित्र, चलो, हम तुम्हे उस भारत रत्न बाबासाहेब के जीवन काल के प्रारम्भिक अवस्था में लेकर चलते हैं और तुम्हारे अधूरे ज्ञान को पूर्ण करने का प्रयास करते हैं।

पृष्ठभूमि:-

श्री रामजी मालोजी सकपाल और श्रीमती भीमाबाई के घर में दिनांक १४ अप्रैल १८९१ को एक बालक ने जन्म लिया, जो आगे चलकर भारत के संविधान निर्मित के रूप में विख्यात हुआ। श्री रामजी मालोजी सकपाल वर्तमान महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में आंबडवे गाँव के निवासी थे, वे हिंदू महार जाति से संबंध रखते थे। वे ब्रिटिश भारत के मध्य भारत प्रांत (अब मध्य प्रदेश) में स्थित महू नगर सैन्य छावनी में सेवारत थे तथा यहां काम करते हुये वे सूबेदार के पद तक पहुँचे थे। उन्होंने मराठी और अंग्रेजी में औपचारिक शिक्षा प्राप्त की थी।

दिनांक ७  नवम्बर १९०० को श्री रामजी सकपाल ने सातारा की गवर्न्मेण्ट हाइस्कूल में अपने बेटे भीमराव का नाम “भिवा रामजी आंबडवेकर” दर्ज कराया अर्थात मूल उपनाम “सकपाल” के स्थान पर “आंबडवेकर” दर्ज कराया गया जो कि उनके आंबडवे गाँव से संबंधित था। यह सामान्य प्रचलन में था कि “कोकण प्रांत के लोग अपना उपनाम गाँव के नाम से रखते थे। बाद में एक ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा केशव आम्बेडकर जो भिवा रामजी आंबडवेकर विशेष स्नेह रखते थे, ने उनके नाम से ‘आंबडवेकर’ हटाकर अपना सरल ‘आम्बेडकर’ उपनाम जोड़ दिया और तब से आज तक वे “आम्बेडकर” उपनाम से ही जाने जाते हैं।

उपर्युक्त अकाट्य तथ्य बताने के पश्चात हमने वामपंथी मित्र से पूछा, हे मित्र तुमने तो सबको अपनी क्षमता के अनुसार तीव्र ध्वनि करके यह तो बता दिया कि हिन्दू धर्म में उनके साथ अत्यधिक भेदभाव किया गया परन्तु क्या तुमने ये कभी बताने का प्रयास किया कि उसी हिन्दू धर्म के एक ब्राह्मण ने बाबासाहेब को बड़े ही प्रेम से अपना उपनाम “अम्बेडकर” प्रदान करके एक प्रकार से उन्हें अपना लिया और हिन्दू धर्म की महानता को स्थापित किया। हमारे इस प्रश्न पर हमारे वामपंथी मित्र थोड़े सोच में पड़े परन्तु तुरंत अपने वामपंथी स्वरूप को आगे करते हुए उन्होंने कहा तो क्या हुआ “अपवाद तो हर धर्म में मिल जायेंगे” इसमें क्या नया है?

हमें अपने वामपंथी मित्र इसे कुछ इसी प्रकार के उत्तर की अपेक्षा थी, अत: हमने उनसे कहा ठीक है चलो आगे बढ़ते हैं :-

जैसा कि हम पहले हि बता चुके हैं कि दिंनाक ७ नवंबर १९०० को आम्बेडकर जी ने सातारा नगर में राजवाड़ा चौक पर स्थित शासकीय हाईस्कूल (अब प्रतापसिंह हाईस्कूल) में  अंग्रेजी की पहली कक्षा में प्रवेश लिया। इसके कुछ वर्ष के पश्चात आंबेडकर जी अपने पिता श्री रामजी सकपाल के साथ बंबई (अब मुंबई) चले आये। अप्रैल १९०६ में, जब भीमराव लगभग १५ वर्ष आयु के थे, तो रमाबाई नामक एक सुन्दर और सुशिल कन्या से उनकी शादी हो गयी। वर्ष १९०७ में, उन्होंने अपनी मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और अगले वर्ष उन्होंने एल्फिंस्टन कॉलेज में प्रवेश किया, जो कि बॉम्बे विश्वविद्यालय से संबद्ध था। इस स्तर पर शिक्षा प्राप्त करने वाले अपने समुदाय से वे पहले व्यक्ति थे। वर्ष १९१२ तक, उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में कला स्नातक (बी॰ए॰) की उपाधि प्राप्त की और बड़ौदा राज्य सरकार के साथ काम करने लगे। आपको बताते चलें की अम्बेडकर जी की प्रतिभा से प्रभावित होकर सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय (बड़ौदा के गायकवाड़) द्वारा (ऐसे ही प्रतिभावान छात्रों की सहायता हेतु) स्थापित एक “छात्रवृत्ति योजना” के अंतर्गत संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयॉर्क नगर स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए तीन वर्ष के लिए ११ .५०  डॉलर प्रति माह बड़ौदा राज्य की छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी जिसका लाभ उठाकर वे वर्ष १९१३  में, २२  वर्ष की आयु में संयुक्त राज्य अमेरिक चले गए।

उक्त तथ्य को प्रकटकर हमने अपने वामपंथी मित्र से पुन: पूछा कि हे वामपंथी मित्र अब तनिक ये बताइये कि एक ब्राह्मण ने अम्बेडकर जी को अपनी पहचान दी और एक उच्चकुल के गायकवाड़ ने उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका जाकर पढ़ाई करने का सुअवसर प्रदान किया, तो क्या वो ब्राह्मण और गायकवाड़ हिन्दू धर्म के अंग नहीं थे? और ऐसे न जाने कितने अनगिनत पक्ष एल्फिंस्टन कालेज और बॉम्बे विश्वविद्यालय में घटित हुए होंगे, जब हर वर्ग का विद्यार्थी एक साथ अम्बेडकर जी के साथ बैठकर बड़े ही प्रेम से शिक्षा प्राप्त कर रहे होंगे। अंग्रेज भी तो भारतियों को दोयम दर्जे का मानते थे। हमारे वामपंथी मित्र इस तथ्य को नकार नहीं पाए पर सनातन (हिन्दू) धर्म का विरोध करने की सनक में जीने वाले वामपंथी की तरह वो एक बार फिर अपनी पटरी पर वापस आ गए और बोले कुछ भी हो “पर ये तो सत्य है ना उन्होंने हिन्दू धर्म का त्याग कर दिया”।

वामपंथी पुन: बोले बाबासाहेब ने भले ही इस्लाम या वामपंथ को नहीं अपनाया, पर हिन्दू धर्म की भांति इस्लाम या वामपंथ की आलोचना  की, उसका त्याग तो नहीं किया। वामपंथ को छोड़ दो, सबसे पहले तुम सनातनी ये बताओ की क्या उन्होंने कभी इस्लाम के बारे में कुछ बोला, क्या कभी मुसलमानो के विरुद्ध कुछ बोला? तुम सनातनी स्वयं को सही साबित करने हेतु कुछ भी कहना शुरू कर देते हो। अगर बाबसाहेब ने अपने जीवनकाल में कुछ भी इस्लाम और मुसलमान के विरुद्ध बोला हो तो बताओ।

हे मित्रों जैसा की आप जानते ही हैं की अल्प ज्ञान सदैव हानियुक्त होता है अत: हमने वामपंथी मित्र द्वारा दिए गए इस मौके को हाथो हाथ लेते हुए बताना शुरू किया “कि हे वामपंथी मित्र सुनो दिनांक १३ अक्टूबर १९३५ को नासिक के निकट येवला नामक स्थान पर हुए एक सम्मेलन में बोलते हुए बाबासाहेब अम्बेडकर ने धर्म परिवर्तन की घोषणा की थी। उन्होंने अपने अनुयायियों से भी हिंदू धर्म छोड़ कोई और धर्म अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने अपनी इस बात को भारत भर में कई सार्वजनिक सभाओं में भी दोहराया। इस धर्म-परिवर्तन की घोषणा के बाद हैदराबाद के इस्लाम धर्म के निज़ाम से लेकर कई ईसाई मिशनरियों ने उन्हें करोड़ों रुपये का प्रलोभन भी दिया पर उन्होनें सभी को ठुकरा दिया।

हे मित्रों शब्दों की मर्यादा है अत: इसका शेष एवं महत्वपूर्ण हिस्सा अगले भाग में आपको पढ़ने को मिलेगा आप इन दोनों भागों को अवश्य पढ़ें।

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