मित्रों जब आप और हम बच्चे हुआ करते थे, तो जो भी वस्तु पसंद आती थी हम सब उसको पाने के लिए “जिद” करना शुरु कर देते थे, कुछ वस्तुएँ तो आसानी से “जिद” करने के कारण मिल जाती थी, परन्तु कुछ वस्तुएँ ऐसी होती थी जिनके लिए जिद करने पर पीठ और तशरीफ़ दोनों लाल गुब्बारा हो जाती थी।
पर मित्रों जैसे जैसे हम बड़े होते गये, जिम्मेदारियों के समक्ष नतमस्तक होकर हमने आपने सबने जिद छोड़ दी और जब जिद छोड़ दी, तभी हम समझौतावादी हो गये और पूरा जीवन समझौतों से भर गया और अब जब हमारे बच्चे “जिद” करते हैँ तो क्रोध से अधिक हँसी आती है उस दिन को याद करके जब हम सब जिद किया करते थे। अब तो हम कभी बच्चों की, कभी माता पिता, कभी भाई बहन तो कभी पत्नी की जिद ही पूरा करने में व्यस्त रहते हैँ और इनसे मौका मिला तो जंहा नौकरी करते हैँ, वंहा के सिस्टम की “जिद” को पूरा करने लगते हैँ।
वैसे मित्रों ये जो “जिद्दीपन” है ना जब सकारात्मक हो समाजिकता से ओत प्रोत हो, नैतिकता से परिपूर्ण हो और राष्ट्रवाद की भावना के रस से सराबोर हो तो कभी सावरकर, कभी भगत, कभी नेताजी, कभी आज़ाद, कभी बिस्मिल, कभी लाल बाल और पाल तो कभी सरदार, कभी मुखर्जी, कभी उपाध्याय, कभी शास्त्री, कभी अटल, कभी आडवाणी तो कभी नरेंद्र दामोदर दास मोदी बनकर समस्त विश्व को प्रभावित कर देता है और अपने रंग में रंग देता है।
वो महाराणा प्रताप की अमर जिद थी, जिसे अकबर कभी तोड़ ना पाया, वो गुरु गोविंद सिंह की पवित्र जिद थी, जिसे मलेच्छ हैवान औरंगजेब झुका ना पाया, वो छत्रपति शिवाजी महाराज की महान जिद थी जिसने “हिन्दवी स्वराज” की स्थापना कर दी। वो महारानी लक्ष्मीबाई की देशप्रेम में डूबी जिद थी, जिसे अंग्रेज खंडित ना कर पाए। वो उधम सिंह की क्रांतिकारी जिद थी, जिसने उस क्रूर अंग्रेज को उसके देश में घुस कर उसके अपराध की सजा दी।
वो सरदार पटेल की जिद थी जिसने ५८३ रियासतों को भारत में मिलाकर एक राष्ट्र का निर्माण किया। वो श्यामाप्रसाद मुखर्जी की जिद थी जिसने एक देश एक संविधान का सपना संजोया, जिसे उनके शिष्य नरेंद्र और अमित ने अपने कार्यकाल में पूरा किया। वो शास्त्री जी की जिद थी, जिसके समक्ष आमेरिका और पाकिस्तान दोनों को झुकना पड़ा और जिनके “जय जवान जय किसान” के नारों ने पूरे देश में क्रांति पैदा कर दी। वो इंदिरा गांधी जी की हि जिद थी जिसने पाकिस्तान को तोड़कर बंगलादेश नामक नया मुल्क पैदा कर दिया।
वो अटल जी की जिद थी जिसने आमेरिका, चिन और ब्रिटेन को मूर्ख बनाकर “बुद्धा” को मुस्कराने अर्थात परमाणु परीक्षण किया और वर्ष २०१४ में ये भारतीय जनता की हि जिद थी की भ्र्ष्टाचारीयों और देशद्रोहियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए उन्होंने आदरणीय श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी के हाथों में देश की बागडोर सौंप दिया।
मित्रों ये हमारा प्रधानमंत्री भी बड़ा जिद्दी है:-
१:- उसने जिद की और ४९ करोड़ भारतीयों का खाता बैंको में खुल गया;
२:- उसने जिद की और स्वच्छ भारत योजना के तहत ११ करोड़ के आसपास शौचालय बनवा दिये गये;
३:- उसने जिद की और कई करोड़ गरीब भारतीयों को उनका अपना घर मिल गया;
४:- उसने जिद की और १० करोड़ से ऊपर गरीब घरों में गस के चूल्हे सहित एक गैस सिलेंडर भी पहुंच गया;
५:-उसने जिद की हर घर जल योजना से कई करोड़ घरों में स्वच्छ जल पहुंच गया;
६:-उसने जिद की और देश के युवाओं ने “मेक इन इंडिया” “स्टार्टअप इंडिया” और “डिजिटल इंडिया” से रोजगार की पूरे देश में बहार ला दी, नौकरी के पीछे भागने वाला युवा अब स्वरोजगार करने को आतुर हो गया;
७:- उसने जिद की प्रभु श्रीराम के मंदिर के लिए सर्वोच्च न्यायालय का आदेश मानना होगा और सारे देश ने मान लिया;
८:- उसने जिद की अनुच्छेद ३७० और ३५अ को जड़ से मिटाना है और मिटा दिया;
९:- उसने आतंकियों को सबक सिखाने की जिद की और भारतीय सेना ने “सर्जिकल और एयर” स्ट्राइक करके अपना दमखम दिखा दिया;
१०:- उसने जिद की भारतीय सेना को शक्तिशाली बनाने और आधुनिक हथियारों और मिसाइलों से युक्त करने की और उसने पूरी कर दी;
११:- उसने जिद की सीमावरती क्षत्रों विशेषकर चिन से लगी सीमाओं पर इंफ्रास्ट्रक्चर का जाल बिछाने का और उसने कर दिखाया;
१२:- उसने जिद की बगैर युद्ध के पाकिस्तान को भिखारी बनाने का और आज पाकिस्तान कटोरा लेकर घूम रहा है;
१३:- उसने जिद की चिन को सबक सिखाने का और हर मोर्चे पर चिन भारत से पिछड़ता जा रहा है और सबसे बड़ी जिद तो कोरोना काल में की और उसके जिद से १:- कोरोना की स्वदेशी वैक्सीन विकसित हुई और सम्पूर्ण विश्व विशेषकर गरीब देशों के लिए संजीवनी साबित हुई, २:- मास्क और चिकित्स्कों के लिए कोरोना किट का निर्माण भारत में हि होने लगा और कई देशों को निर्यात किया गया और ३:- उसके जिद ने भारत और भरतीयों को सुरक्षित कर दिया। मित्रों ऐसे कई उदाहरण हैँ जिससे इस जिद्दी के जिद का आकलन आप कर सकते है, जिससे देश का मान, सम्मान और स्वाभिमान में चार चाँद लगा दिये।
उसकी इसी सादगी भरी सकारात्मक जिद से प्रभावित होकर विश्व के करीब ९ देशों ने अपने यंहा के सर्वोच्च नागरिक का पुरस्कार से उसे सम्मानित किया। इसमें वो देश भी सम्मिलित है, जंहा पर इस्लामिक तारीख के अनुसार “इस्लाम” का जन्म हुआ और जिसे मोहम्मद साहेब के शहर के नाम से भी जानते हैँ।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने “चैंपियन्स ऑफ चैंपियन” का सम्मान दिया।
आज मामला फिलिस्तीन और इजराइल का हो, रूस और Ukraine का हो, इरान और अमेरिका हो, अरमेनिया या अजरबैजान का हो, चिन या ताइवान का हो सबका फैसला इसी जिद्दी के ऊपर निर्भर कर रहा है, क्योंकि दोनों पक्ष इसी जिद्दी पर भरोसा करते हैँ।
इस जिद्दी पर भरोसा इतना है की ऑस्ट्रेलिया के सर्वोच्च नेता इन्हें “Boss” कहते हैँ, दक्षिण अफ़्रीकी देश के प्रधानमंत्री इसके पैर छुकर गुरु मानते हुए आशीर्वाद लेते हैँ, फ़्रांस अपने इतिहास के परम्परा को तोड़कर अपने राष्ट्रीय दिवस पर इस जिद्दी को बुलाकर मुख्य अतिथि बनाता है और हृदय से सम्मानित करता है और विजा ना देने वाला अमेरिका white house में विशेष भोज और सम्मान का आयोजन करता है।
ये मित्रों एक सकारात्मक, नैतिकता, धार्मिकता, समाजिकता और राष्ट्रवाद से परिपूर्ण जिद का उदाहरण है।
आइये अब नकारात्मक और औचित्यहीन जिद को भी परख लेते हैँ, हालांकी कुछ नाम भी अगर मै लिख दूँ तो आप उनके चरित्र के द्वारा किये गये नकारात्मक जिद के परिणाम को तुरंत पहचान लेंगे:-
१:- रावण की जिद नकारात्मक थी;
२:- दुर्योधन की जिद नकारात्मक थी;
३:- मिरजाफर की जिद नकारात्मक थी;
४:- जयचंद की जिद नकारात्मक थी;
५:- गांधी जी की जिद नकारात्मक थी;
६:- नेहरू की जिद नकारात्मक थी;
७:- इंदिरा गांधी की जिद नकारात्मक थी (इमरजेंसी);
८:- सोनिया गाँधी की जिद नकारात्मक थी और अब
९:- राहुल राजीव गाँधी की जिद नकारात्मक है।
मित्रों जिस जिद से अपमान, आलोचना और देशभक्ति पर संदेह प्राप्त हो वो जिद उस जिद्दी के विनाश का कारण बनती है। अपनी जिद्द में आकर विदेश जाकर अपने देश की बुराई करना, देश को तोड़ने वाली ताकतों के साथ खड़ा होना उन्हें समर्थन देना, देश के जनमानस का अपमान करना और घड़ी घड़ी न्यायालय में जाकर क्षमायाचना करना और उसके पश्चात भी “मोहब्बत की दुकान” खोलने का दावा करना इत्यादि ये सब नकारात्मक और चरित्रविहीन जिद के हि लक्षण है।
यदि जिद दिशाहीन, आधारहीन और सदाचारविहीन और देशप्रेमविहीन हो तो ना तो उसका सम्मान होता है और ना उसका कोई यशगान होता है। वो एक कलंकित, तेजहीन और प्रभावशून्य जीवन का उदाहरण बन जाता है। ऐसा नकारात्मक जीद स्वयं का नाश तो करता हि है, उस जिद्दी का भी सर्वनाश कर देता है। इस प्रकार का जिद अहंकार और तत्पश्चात घमंड का रूप ले लेता है, जिससे ज्ञान, बुद्धि और विवेक सब साथ छोड़ जाते हैँ। इस तथ्य को कुछ संस्कृत के श्लोक इस प्रकार प्रस्तुत करते हैँ:-
मा कुरु दर्पं मा कुरु गर्वं मा भव मानी मानय सर्वम्।।
अहंकारः सदा त्याज्यः साक्षात् नरकस्य कारणम्।
हिंदी अर्थ- ऐ मूर्ख, घमंड मत कर। अपने आप पर गर्व मत कर। अहंकारी मत बन। यह तेरा पतन का कारण बनेगा। अहंकार अर्थात् घमंड का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए। नहीं तो यह नरक ले जाने वाला होता है।
अभिमानात् दशाननोsपि नष्टः।।
दुर्योधनोsपि विनष्टोsभिमानात्।।
हिंदी अर्थ- अत्यधिक अहंकार व घमंड होने के कारण सौ भाइयों सहित दुर्योधन भी काल के ग्रास में समा गया।- घमंड के कारण दश मुखों वाला विश्व विजयी रावण भी एक दिन कुल सहित नष्ट हो गया।
अंहकारात् सदा राजन् नश्यते सर्वसाधितम्।।
प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः।
अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते।।
हिंदी अर्थ- हे राजन, अहंकार अर्थात् घमंड के कारण व्यक्ति का वह सब कुछ नष्ट हो जाता है, जो कुछ भी उसने जीवन में अर्जित किया है।इस संसार में सभी प्रकार के कर्म प्रकृति के द्वारा स्वयं किए जा रहे हैं लेकिन जिस व्यक्ति के अंतः करण में अहंकार भरा रहता है। वह अहंकार के वशीभूत होकर अपने आप को कर्ता समझता है। अहंकारी पुरुष विमूढात्मा होता है।
इसीलिए मित्रों मेरे विचार से जिद्दी बनना अपने आप में कोई अवगुण नहीं है अपितु यह एक चारित्रिक दृढ़ता का प्रतिक है, इसके साथ यदि सकारात्मकता, नैतिकता, समाजिकता, धार्मिकता और राष्ट्रप्रेम जुड़ जाए तो “नरेन्द्र मोदी” बन जाता है, परन्तु इसमें नकारात्मकता, अनैतिकता, अवसरवादिता, असमाजिकता, अधर्मिकता और स्वार्थप्रेम जुड़ जाता है तो वो “कांग्रेस” बन जाता है और इसका “युवराज” बन जाता है।
मान सहित विष खाय के, शम्भु भये जगदीश।
बिना मान अमृत पिये, राहु कटायो शीश।।
हिंदी अर्थ-
भगवान शंकर ने समस्त संसार की रक्षा के लिए विषपान कर लिया और इसके बावजूद भी अपने आप पर गर्व या अभिमान नहीं होने दिया और इस प्रकार समस्त संसार के नीलकंठ महादेव बन गये। वहीं दूसरी ओर राहु ग्रह को अमृत पान करने के बाद घमंड में उन्मत्त होकर अपना शीश कटाना पड़ा।
लेखक:- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
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