उत्तर प्रदेश के काशी विश्वनाथ कॉरिडोर और मध्य प्रदेश के महाकाल कॉरिडोर की तर्ज पर असम सरकार ने गुवाहाटी में माँ कामाख्या कॉरिडोर की रूप रेखा तैयार कर ली है। यानी जल्द ही राज्य सरकार ‘माँ कामाख्या कॉरिडोर’ पर कार्य शुरू कर देगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने बुधवार (19 अप्रैल 2023) को असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa Sarma) द्वारा शेयर की गई वीडियो को साझा किया।
इसके साथ उन्होंने लिखा, “मुझे यकीन है कि ‘माँ कामाख्या कॉरिडोर’ एक ऐतिहासिक पहल होगी। जहाँ तक आध्यात्मिक अनुभव का संबंध है, काशी विश्वनाथ धाम और महाकाल महालोक में परिवर्तन हो रहा है। समान रूप से महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलता है और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है।” असम के सीएम ने मंगलवार (18 अप्रैल, 2023) को अपने ट्विटर हैंडल पर मंदिर गलियारे का एनीमेटेड वीडियो शेयर किया और भक्तों को यहाँ के भविष्य की एक झलक पेश की थी।
सीएम ने लिखा था, ” ‘माँ कामाख्या कॉरिडोर’ भविष्य में कैसा दिखेगा। इसकी एक झलक साझा कर रहा हूँ।”
I am sure Maa Kamakhya corridor will be a landmark initiative.
Kashi Vishwanath Dham and Shree Mahakal Mahalok have been transformative as far as the spiritual experience is concerned. Equally important is the fact that tourism is enhanced and the local economy gets a boost. https://t.co/le8gmNrSNv
— Narendra Modi (@narendramodi) April 19, 2023
कामाख्या मंदिर सभी 108 शक्ति पीठों में से एक प्राचीन मंदिरों में से एक है। असम में नीलाचल पहाड़ी की चोटी पर स्थित कामाख्या मंदिर की उत्पत्ति 8वीं शताब्दी में हुई थी। इसे 16वीं शताब्दी में कूचबिहार के राजा नारा नारायण ने फिर से बनवाया था। इसके बाद से इसे कई बार पुनर्निमित किया गया है। इस मंदिर में अन्य मंदिरों की तरह मूर्ति की पूजा नहीं की जाती है, बल्कि यहाँ देवी की योनि की पूजा की जाती है। इसे गुफा के एक कोने में रखा गया है। बताया जाता है कि मंदिर में मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को भी प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाती है।
कामाख्या मंदिर एक वार्षिक आयोजन करता है, जिसे अंबुबासी पूजा के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान देवी का मासिक धर्म होता है। मंदिर तीन दिनों तक बंद रहने के बाद चौथे दिन उत्सव के साथ फिर से खुल जाता है। मान्यता है कि इस पर्व के दौरान ब्रह्मपुत्र नदी भी लाल हो जाती है। इस खास मौके पर शक्ति प्राप्त करने के लिए साधु गुफाओं में साधना करते हैं।