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Home » चंद्रशेखर आज़ाद की मूँछ वाली तस्वीर के पीछे की कहानी, जब झाँसी में रुके थे News To Nation

भारत की बात

चंद्रशेखर आज़ाद की मूँछ वाली तस्वीर के पीछे की कहानी, जब झाँसी में रुके थे News To Nation

NTN Staff
3 years ago
11 Min Read
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काकोरी कांड में फ़रार मुजरिम होने के कारण पुलिस चंद्रशेखर आज़ाद की जान के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी। क्रांतिकारियों की दुनिया के अब वे एक जांबाज सिपाही थे, जिनकी दिलेरी के किस्से अब हर शहर में गूँज रहे थे। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के महान क्रांतिकारियों के साथ अब उनका नाम लिया जाने लगा था। आज़ाद साहब अब महज एक चंचल युवक ‘क्विक सिल्वर’ नहीं रह गए थे और भगत सिंह, सुखदेव, राज गरु, अशफाकुल्लाह, बिस्मिल आदि के साथ हर एक एक गंभीर बैठक में शामिल हुआ करते थे।

अंग्रेज़ों के विरुद्ध किए जाने वाले हर एक्शन से पहले संगठन की बैठक में उनकी मौजूदगी ज़रूरी होती थी। संगठन के भेद को बनाए रखने के लिए हर शख्स को हिदायत थी कि अपने घर का पता दूसरे सदस्य को ना बताएँ और तस्वीर तो खिंचवाने का मतलब ही नहीं था। यही एक कारण है कि उन महान क्रांतिकारियों की बहुत ज़्यादा तस्वीरें आज भी हमारे पास नहीं हैं। आज 27 फ़रवरी जो कि आज़ाद साहब का बलिदान दिवस है, पर बात करते हैं एक ऐसी तस्वीर की, जिसके बारे में इंटरनेट पर तरह-तरह की भ्रामक सूचनाएँ हैं।

यह बात उन दिनों की है जब आज़ाद साहब अपने अज्ञातवास में अपने मित्र और गुरु मास्टर रुद्रनारायण के घर पर रह रहे थे। आज़ाद साहब उस दिन आँगन में व्यायाम पश्चात स्नान आदि कर चुके थे। श्वेत धोती कमर पर लुंगी की तरह लपेटे हुए थे और कंधे पर जनेऊ था ही। आज़ाद जब अच्छे मूड में होते थे तो बाल काढ़ते हुए कुछ भी गुनगुना रहे होते थे। उस रोज़ भी गुनगुना ही रहे थे। मास्टर जी दूर बैठे उनको देख रहे थे। मास्टर जी को अचानक जाने क्या सूझा, उन्होंने अपना कैमरा उठाया और बोले, “पंडितजी, आज आप कुछ अलग ही रहे हैं, एक तस्वीर खींच लूँ?”

“अरे नहीं मास्टर जी, आपको तो पता ही है कि संगठन में इसकी मनाही है।” आज़ाद की किसी तरह की कोई भी तस्वीर उस रोज़ तक किसी के पास नहीं थी। वे नहीं चाहते थे कि किसी तरह कोई तस्वीर ब्रिटिश पुलिस तक पहुँच ,जाए और उनकी पहचान हो सके। आज़ाद को भी यह पता था कि अंग्रेज़ों ने उनके पीछे गुप्तचर लगाये हुए हैं, इसलिए वो नहीं चाहते थे कि उनकी तस्वीर खींची जाए। “वो तो नये सदस्यों के साथ है पंडित जी। तुम और मैं नये हैं क्या?” – मास्टर जी ने पूछा।

“फिर भी..” आज़ाद उलझन में थे। मास्टर जी आज़ाद के नजदीक आए और कंधे पर हाथ रख कर बोले, “आज़ाद, तुम्हारी तस्वीर की इसीलिए और भी ज़रूरत है कि आने वाली पीढ़ी यह देख और समझ सके कि आज़ाद उन्हीं की तरह आम शक्ल सूरत का एक नौजवान था मगर स्वतंत्रता, क्रांति की भावना और साहस ने उसे भारत का एक महान क्रांतिकारी बना दिया।” आज़ाद चुप थे। “मैं वादा करता हूँ कि इस तस्वीर के बारे में किसी को पता नहीं चलेगा और पूर्ण रूप से सुरक्षित रहेगी। मैं अपने लिए ही ले रहा हूँ। घबराओ मत, भरोसा है ना मुझपर?” – मास्टर जी खड़े हो गए।

“क्या बात कर दी मास्टर जी आपने, जान से ज़्यादा भरोसा है आप पर।” – आज़ाद ने कहा। आखिरकार मास्टर जी ने आज़ाद को मना ही लिया तस्वीर के लिए। लेकिन आज़ाद ने हलके से एक बार और टालने की कोशिश की, “लेकिन ऐसे उघारे बदन, अच्छा नहीं लगेगा, मैं अंदर से कुर्ता पहनकर आता हूँ?” मास्टर जी मौके को गँवाना नहीं चाहते थे। आज़ाद के मूड का पता नहीं, कहीं बदल गया तो फिर वो राजी नहीं होने वाले थे। मास्टर जी बोले, “दाऊ, कुर्ता रेन दो।”

“अरे मूँछ तो ठीक कर लूँ, नहाने से बिगड़ गयी हैं।” कहते हुए आज़ाद ने अपनी मूँछ उमेठना शुरू की।
“क्लिक!”
“अरे मास्टर जी आप भी ना..” आज़ाद कहते ही रह गए।
तस्वीर ली जा चुकी थी।

किन्तु इस तस्वीर के लेने के कुछ दिन बाद ही आज़ाद को महसूस होने लगा कि यह काम ठीक नहीं हुआ है। उस रोज़ वो विश्वनाथ वैशम्पायन के पास थे, जब अचानक से उनके मन में पता नहीं क्या सूझा और विश्वनाथ से बोले, “एक काम करोगे मेरा?”
“कैसी बात कर रहे आप दाऊ? पूछने की क्या बात है? आप आदेश कीजिए।”
“तुम ज़रा मास्टर जी के पास जाओ और उनसे कहो कि वो जो तस्वीर उन्होंने मेरी ली है, उस तस्वीर को तुरंत नष्ट कर दिया जाना चाहिए।”
“कौन सी तस्वीर दाऊ? वैशम्पायन चौंक गए।
“अरे वो मास्टर जी ने बहला-फुसला कर मेरी एक तस्वीर उतार ली है जबकि तुमको पता है कि यह संगठन के क़ानून के खिलाफ़ है।”
“अब ले ली है तो जान दो दाऊ।”
“नहीं विश्वनाथ! जो गलत है वो गलत है। कोई भी उसका दुरुपयोग कर सकता है।”
विश्वनाथ तुरंत मास्टर जी के पास पहुँचे और मास्टर जी को आज़ाद का संदेसा सुनाया।
“हम्म्म्म!”
“क्या हुआ मास्टर जी?” विश्वनाथ अब चिंतित थे।
“मुझे आज़ाद के डर के बारे में पता है और यह भी पता है कि भारत की स्वंत्रतता में अभी आज़ाद की कितनी ज़रूरत है।”
“जी मास्टर जी।”
“देखो बच्चन, आज नहीं तो कल देश को आज़ाद होना ही है। तुम यह बताओ कि भारत के आज़ाद हो जाने पर लोग इस महान क्रांतिकारी को किस तरह याद रखेंगे? मास्टर जी ने वैशम्पायन को समझाया।
“मैं मानता हूँ इस बात को।”
“तुम निश्चिंत रहो विश्वनाथ, आज़ाद के जीते जी यह तस्वीर कभी आम जनता के सामने नहीं आएगी। तुमको यह भी पता है कि जिस रास्ते पर आज़ाद चल रहे हैं उसका अंजाम क्या है। यह जान लो कि यह एक अकेली तस्वीर है जिससे उनकी स्मृति सुरक्षित रहेगी और लोग इस जाँबाज़ आज़ाद को कभी भूल नहीं पायेंगे।” मास्टर जी वैशम्पायन को यह समझाने में सफल होगए थे।
“मैं ऐसा करता हूँ कि इसके निगेटिव की प्लेट को दीवार में चुनवा देता हूँ और इसके प्रिंट को नष्ट कर देता हूँ। तुम लौट कर आज़ाद को यह बता देना कि उनकी तस्वीर नष्ट कर दी गई है।”
“हम दाऊ से झूठ ना बोल पाएँगे मास्टर जी।” वैशम्पायन के लिए आज़ाद साहब से झूठ बोलना बेहद मुश्किल था।
मास्टर जी मुस्कुराए और बोले, “अश्वथामा मारा गया!” याद है ना?
वैशम्पायन ने मास्टर जी की ओर देखा, “तुम आज़ाद साहब से वही कहोगे जो तुम देखने वाले हो।”
मास्टर जी ने वैशम्पायन के सामने आज़ाद साहब की वो तस्वीर और कुछ दूसरे नेगेटिव नष्ट कर दिये।
“अब तुम आज़ाद को बोलना कि आपकी तस्वीर और नेगेटिव नष्ट कर दिए हैं मास्टर जी ने। ठीक है ना विश्वनाथ?” मास्टर जी विश्वनाथ के कंधे पर हाथ रखा।
विश्वनाथ लौटे और आज़ाद के पास पहुँचे।
“कहाँ हैं तस्वीर?” आज़ाद चिंतित थे।
“आपकी तस्वीर और नेगेटिव नष्ट कर दिए हैं मास्टर जी ने।” विश्वनाथ धीमे से बोले।
“खाओ हमाई सौं विश्वनाथ।”
“आपकी सौं दाऊ।”

अश्वथामा एक बार फिर काल के गाल को प्राप्त हुआ था। जब आज़ाद बलिदान हो गए तब यह तस्वीर मास्टर जी ने दीवार से निगेटिव निकलवा कर बनवाई और इस तरह देश के सामने आई उस महान क्रांतिकारी की एकमात्र जीवंत छवि, जो आज तक देश के तमाम वासियों के मन में बसी है। अब आते हैं उस तस्वीर पर जिसमें आज़ाद एक महिला और दो बच्चों के साथ बैठे हुए हैं। यह वही तस्वीर है जिसके सहारे भारत सरकार ने आज़ाद साहब के ऊपर डाक टिकट जारी किया था, जो आज भी उनकी अमिट पहचान है।

27 फ़रवरी 1988 में भारत सरकार द्वारा आज़ाद साहब के ऊपर जो साथ पैसे का टिकट जारी किया गया था, उस पर भी इसी तस्वीर का हिस्सा है।

बहुत दिनों तक इंटरनेट पर यह खबर उड़ती रही कि यह आज़ाद साहब की धर्मपत्नी और उनके बच्चों की हैं। आपको बताता चलूँ कि इस तस्वीर में आज़ाद साहब मास्टर जी के घर में, यानी मेरे नाना श्री मास्टर रुद्रनारायण जी की धर्मपत्नी श्रीमती मुन्नीदेवी (मेरी नानी) और उनकी दो बिटियों सावित्री जी और लक्ष्मी जी के साथ बैठे हैं। इस तस्वीर लेने का कारण यह था कि लोगों को यह लगे कि आज़ाद मास्टर जी के परिवार के ही सदस्य हैं। मैं आभारी हूँ मास्टर रुद्रनारायण जी की पौत्री श्रीमती गीता राय और प्रपौत्र श्री अभिनव श्रीवास्तव जी का, जो समय-समय पर मेरी जानकारियों में बढ़ोतरी करते रहते हैं।

27 फ़रवरी, 1988 को भारत सरकार द्वारा आज़ाद साहब के ऊपर जो साथ पैसे का टिकट जारी किया गया था, उस पर भी इसी तस्वीर का हिस्सा है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम एक ऐसे ही कुछ गुमनाम क्रांतिकारियों की गाथाएँ आप क्रांतिदूत शृंखला में पढ़ सकते हैं जो डॉ. मनीष श्रीवास्तव द्वारा लिखी गई हैं।

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