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Reading: ज्ञानवापी तक ही सीमित नहीं ‘ऐतिहासिक भूल’, काशी में तोड़े कई मंदिर News To Nation
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भारत की बात

ज्ञानवापी तक ही सीमित नहीं ‘ऐतिहासिक भूल’, काशी में तोड़े कई मंदिर News To Nation

NTN Staff
2 years ago
9 Min Read
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ज्ञानवापी विवाद को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बड़ी बात कही है। उन्होंने कहा है, “ज्ञानवापी को अगर मस्जिद कहेंगे, तो विवाद होगा। भगवान ने जिसको दृष्टि दी है, वह देखे न। त्रिशूल मस्जिद के अंदर क्या कर रहा है? हमने तो नहीं रखे। वहाँ ज्योतिर्लिंग हैं, देव प्रतिमाएँ हैं। दीवारें चिल्ला-चिल्ला कर क्या कह रही हैं? मुझे लगता है कि मुस्लिम पक्ष की तरफ से प्रस्ताव आना चाहिए कि साहब ऐतिहासिक गलती हुई है, उस गलती के लिए हम चाहते हैं समाधान हो।”

योगी आदित्यनाथ ने जिस ऐति​हासिक गलती का जिक्र किया है, वह केवल ज्ञानवापी तक ही सीमित नहीं है। इस्लामी आक्रांताओं ने काशी के कई हिस्सों में मंदिरों को तोड़कर उस पर मस्जिद बनवाई थी। मुहम्मद गोरी, कुतुबुद्दीन ऐबक, रजिया सुल्तान, मुहम्मद शाह तुगलक, फिरोजशाह तुगलक, सिकंदर लोदी सहित कई इस्लामी अक्रांता इसमें शामिल रहे।

मुहम्मद गोरी ने 12वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत में एक के बाद एक लूट और विध्वंस की घटनाओं को अंजाम दिया। सन् 1193 में कन्नौज के राजा जयचंद और कुतुबुद्दीन ऐबक के बीच यमुना नदी के किनारे चंदावर (अभी फिरोजाबाद) में एक भीषण युद्ध हुआ, जिसमें जयचंद की मृत्यु हो गई। पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गोरी के बीच हुए युद्ध में इस्लामी सेना की जबरदस्त हार हुई थी, लेकिन अगले एक वर्ष में ही वो दोबारा लौटा और पृथ्वीराज चौहान की हार के साथ ही दिल्ली में इस्लामी सत्ता की स्थापना हो गई।

जयचंद के खिलाफ युद्ध में खुद मुहम्मद गोरी और कुतुबुद्दीन ऐबक अपनी-अपनी फ़ौज के साथ था। जयचंद का कटा हुआ सिर इन दोनों इस्लामी शासकों के सामने लाया गया। इसके बाद, मुहम्मद गोरी वाराणसी की तरफ बढ़ा। पृथ्वीराज चौहान और जयचंद जैसे हिन्दू राजाओं की मृत्यु के बाद वाराणसी को बचाने वाला शायद ही कोई था। वाराणसी में लूटपाट का भयंकर मंजर देखने को मिला। मंदिर के मंदिर तोड़ डाले गए। वाराणसी न सिर्फ एक धार्मिक नगरी थी, बल्कि व्यापार और वित्त का भी बड़ा केंद्र था। ऐसे में मुहम्मद गोरी ने मनमाने ढंग से लूटपाट मचाई। कहते हैं, यहाँ से लूटे हुए माल को ले जाने के लिए उसे 1400 ऊँटों की ज़रूरत पड़ी थी।

Kashi Viswanath mandir’s history of vandalism :

1. Aibak as commander of Ghori -1192,
2. Either by Hussain Shah Sharqi (1447–1458), or Sikandar Lodhi (1489–1517)
3. Shahjahan wanted to destroy it in 1632, but failed owing to Hindu opposition, and finally
4. Aurangzeb in 1669. pic.twitter.com/XxQc1H1GgX

— Monidipa Bose – Dey (মণিদীপা) (@monidipadey) April 9, 2021

काशी विश्वनाथ मंदिर को भी इसी दौरान ध्वस्त किया गया। इसके बाद स्थानीय लोगों ने काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी उठाई। कन्नौज के राजा जयचंद्र के पुत्र हरीशचंद्र और आम लोगों ने जब मंदिर का निर्माण पुनः शुरू कर दिया, तब कुतुबुद्दीन ऐबक ने 4 वर्षों बाद फिर से अपनी फ़ौज के साथ हमला किया और भारी तबाही मचाई। कुतुबुद्दीन ऐबक ने विश्वेश्वर, अविमुक्तेश्वर, कृतिवासेश्वर, काल भैरव, आदि महादेव, सिद्धेश्वर, बाणेश्वर, कपालेश्वर और बालीश्वर समेत सैकड़ों शिवालयों को तबाह कर दिया। इस तबाही के कारण अगले पाँच-छः दशकों तक ये मंदिर इसी अवस्था में रहे।

तुर्कों का शासन था और दिल्ली में उनकी स्थिति और मजबूत ही होती जा रही थी। ऐसे में कुछेक साधु-संतों के अलावा धर्म की मशाल को ज़िंदा रखने वाले लोग कम ही बचे थे। काशी वही है, जिसके बारे में 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेन सांग ने वर्णन किया है कि उसने यहाँ सैकड़ों शिव मंदिर देखे और हजारों साधु-श्रद्धालु भी अपने शरीर पर भस्म मल कर घूमते हुए उसे दिखे। उसने एक 30 मीटर ऊँची शिव प्रतिमा का भी जिक्र किया है।

Kashi Vishwanath

The original temple was destroyed in 1194 AD by Qutub Ud Din Aibak, after he had defeated Jai Chand of Kannauj.

It was replaced by the Razia Mosque. pic.twitter.com/Oi9Txhrn3f

— Aneesh Gokhale (@authorAneesh) April 9, 2021

हालाँकि, 13वीं शताब्दी के मध्य में ही मुहम्मद गोरी की मौत हो गई और कुतुबुद्दीन ऐबक भी इस दशक के अंत तक मर गया। लेकिन, दिल्ली सल्तनत का काशी पर कब्ज़ा जारी रहा। इसके बाद इल्तुतमिश और फिर उसकी बेटी रजिया सुल्तान का शासन हुआ। जिस रजिया सुल्तान को ‘बहादुर महिला’ बता कर वर्षों तक पढ़ाया जाता रहा उसने भी काशी में मंदिरों को ध्वस्त कर विश्वनाथ मंदिर परिसर में ही एक मस्जिद बनवाई थी। ज्ञानवापी विवादित ढाँचे से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ‘रजिया मस्जिद’ की जगह भी कभी मंदिर ही हुआ करता था।

Razia Sultana, a great epitome of woman empowerment , when you read (only) our text books.#Kashi #Temple #Destruction #MeenakshiJain #Book pic.twitter.com/ooZyLHui6i

— ಹಂಸಾನಂದಿ Hamsanandi हंसानन्दि (@hamsanandi) September 6, 2020

इसके बाद सन् 1448 में मुहम्मद शाह तुगलक ने आसपास के छोटे-बड़े मंदिरों को भी ध्वस्त कर दिया और रजिया मस्जिद को और बड़ा बना दिया। काशी के प्राचीन इतिहास को पढ़ें तो पता चलता है कि यहाँ कई पुष्कर थे, जिन्हें व्यवस्थित ढंग से तबाह कर इस्लामी शासकों ने मस्जिद बनवाए। हालाँकि, उससे पहले 13वीं सदी में हिन्दुओं ने फिर से मंदिर को बना कर खड़ा कर दिया था। इसे हिन्दुओं की जिजीविषा कहें या फिर श्रद्धा, इतने अत्याचार और खून-खराबे के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। इस्लामवादी लगातार मंदिरों को तोड़ते रहे और हिंदू पुनर्निर्माण में लगे रहे।

इन्हीं मंदिरों में से एक था पद्मेश्वर मंदिर, जिसे काशी विश्वनाथ मंदिर के सामने ही बनवाया गया था। हालाँकि, 1296 ईस्वी में बने पद्मेश्वर मंदिर को भी 15वीं शताब्दी के मध्य में तोड़ डाला गया। पद्म नाम के एक साधु ने इसका निर्माण करवाया था। आप जानते हैं कि ये मंदिर अब कहाँ है? इसके ऊपर ही लाल दरवाजा मस्जिद बनवा दिया गया, जिसे आज भी शर्की सुल्तानों का भव्य आर्किटेक्चर बता कर प्रचारित किया जाता है। फिरोजशाह तुगलक से लेकर सिकंदर लोदी तक, कई इस्लामी सुल्तानों ने काशी में मंदिरों को बारम्बार ध्वस्त किया। सन् 1494 में सिकंदर लोदी ने काशी में कई ऐसे मंदिर तोड़े, जिनका पुनर्निर्माण हिंदुओं ने अपने खून-पसीने से किया था।

The Attacks on Kashi Vishwanath Temple.

1. In 1194 CE by Qutb-Ud-Din Aibak, then commander of Mohammad Ghori.

2. In the 15th Century by Ibrahim Lodhi.

3. In 1669 by Aurangzeb. pic.twitter.com/lgKF45f0Wv

— Indian Art (@IndiaArtHistory) July 27, 2020

सन् 1514-1594 के कालखंड में ही जगद्गुरु नारायण भट्ट हुए, जिन्होंने अपनी पुस्तक ‘त्रिस्थली’ में काशी के विश्वनाथ मंदिर के बारे में लिखा है। इसमें उन्होंने कहा है कि अगर म्लेच्छों ने शिवलिंग को हटा दिया है तो वो खाली जगह ही हमारे लिए पवित्र है और उसकी पूजा की जानी चाहिए, अथवा कोई और शिवलिंग स्थापित किया जाना चाहिए। उनके शुरुआती जीवनकाल में मंदिर नहीं बना था, इससे ये पता चलता है। तुगलक और लोदी के विध्वंस से वाराणसी नहीं उबरी थी।

वो नारायण भट्ट ही थे, जिनकी प्रेरणा से राजा टोडरमल ने काशी में पुनः भव्य विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था। आज जिस ज्ञानवापी विवादित ढाँचे को आप देख रहे हैं, उसे औरंगजेब ने इसी मंदिर को तोड़ कर इसके ऊपर बनवाया था। काशी की मुक्ति के प्रयास लगातार चलते रहे और यहाँ पूजा-पाठ भी नहीं रोका गया। बार-बार आक्रमण के बावजूद काशी में पुनर्निर्माण चलता रहा। अब यदि अयोध्या के बाबरी ढाँचे की ही तरह पूरे ज्ञानवापी परिसर का सर्वे हो जाए तो हिंदुओं को एक और बार मंदिर के पुनर्निर्माण का सौभाग्य प्राप्त होगा।


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