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वंदे मातरम में देवी दुर्गा की स्तुति… मुस्लिमों ने किया विरोध तो नेहरू ने चला दी थी कैंची News To Nation

NTN Staff
Last updated: 2023/08/11 at 10:54 AM
NTN Staff 2 years ago
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Contents
वन्दे मातरम का इतिहासक्रांतिगीत वन्दे मातरम का विरोध क्यों? वंदे मातरम और कॉन्ग्रेसआजादी के बाद वंदे मातरम और कट्टरपंथी मुस्लिम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अगस्त, 2023 को अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान लोकसभा में कॉन्ग्रेस और उसकी सहयोगी दलों को जमकर लताड़ लगाई। इसी दौरान उन्होंने संसद में दिए गए राहुल गाँधी के बयान ‘भारत माता की हत्या’ पर जवाब देते हुए वन्दे मातरम का इतिहास बताया। उन्होंने बताया कि कैसे कॉन्ग्रेस ने वन्दे मातरम के टुकड़े कर बहुत पहले ही देश के विभाजन की नींव रख दी थी। 

वन्दे मातरम पर कॉन्ग्रेस ने कैंची क्यों चलाई थी? राजनीतिक वजह से, धार्मिक वजह से या किसी व्यक्ति को खुश करने के लिए? पूरी बात समझने के लिए वन्दे मातरम के इतिहास की तरफ मुड़ते हैं। समझते हैं कि यह कब पहली बार अस्तित्व में आया… कब इस पर किसी ने आपत्ति जताई और कब कॉन्ग्रेसियों ने इसे खंडित ही कर दिया।

वन्दे मातरम का इतिहास

वन्दे मातरम की रचना सबसे पहले बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा पाँच छंदों की कविता के रूप में 7 नवंबर 1875 को की गई थी। ऐसा माना जाता है कि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय को वन्दे मातरम का आइडिया तब आया था, जब वह डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर के रूप में अंग्रेजों की सेवा में थे।

इसी वन्दे मातरम को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 1882 में बंगाली उपन्यास आनंदमठ में प्रकाशित किया। 1896 में रवीन्द्र नाथ टैगोर ने इसे गीतबद्ध किया था। इसके बाद यह उस समय क्रांति का तराना बन गया था। हर क्रन्तिकारी, अमर बलिदानी के जुबान पर यही गीत थी। 

वन्दे मातरम के पाँचों छंद

क्रांतिगीत वन्दे मातरम का विरोध क्यों?

दरअसल, ‘वन्दे मातरम’ का देश विरोधी ताकतों और मुस्लिम लीग द्वारा विरोध शुरू किया गया। जिन आधारों पर विरोध शुरू किया गया, उसी रास्ते पर आगे चल कर देश का बँटवारा भी हुआ। पूरी बात समझने के लिए आपको जानना होगा कि कब और क्यों इसका विरोध शुरू हुआ? फिर नेहरू और कॉन्ग्रेस द्वारा कैसे सिर्फ मुस्लिमों के तुष्टिकरण के लिए इसे खंडित कर इसके एक छोटे हिस्से को राष्ट्रगीत घोषित किया गया?

एक समय था जब पूरा देश इस गीत को गुनगुना रहा था। श्री अरबिंदों ने तो इसे राष्ट्रवाद का मंत्र बता दिया था। लाला लाजपत राय ‘वंदे मातरम’ नाम से उर्दू साप्ताहिक निकाल रहे थे। मैडम भीकाजी कामा ‘वंदे मातरम’ लिखा भारतीय झंडा विदेश में लहरा चुकी थीं। तब मुस्लिम लीग क्या कर रहा था? वो कर रहा था इसका विरोध… 1908 से ही मुस्लिम लीग ने वन्दे मातरम का विरोध करना शुरू कर दिया था।

विरोध की वजह थी – इस गीत में मातृभूमि की वंदना और देवी-देवताओं का जिक्र। मुस्लिमों ने इस पर नाराजगी दिखानी शुरू कर दी। अमृतसर में हुए अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के दूसरे अधिवेशन में 30 दिसंबर 1908 को अध्यक्षीय भाषण देते हुए सैयद अली इमाम ने वंदे मातरम का विरोध किया। इसके बाद खिलाफत आंदोलन के जरिए यह भावना प्रबल होती गई कि वंदे मातरम इस्लाम विरोधी है।

वंदे मातरम और कॉन्ग्रेस

क्रांति का तराना वंदे मातरम अब विवादास्पद हो गया था क्योंकि मुस्लिमों का एक बड़ा वर्ग गीत में वर्णित देवी दुर्गा की स्तुति का विरोध कर रहा था। कॉन्ग्रेस भला पीछे कैसे रहती? मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए कॉन्ग्रेस ने तब जो काम किया, वो आज तक कर रही है।

वंदे मातरम को लेकर 1937 में कॉन्ग्रेस ने जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति गठित की। इसमें मुस्लिम प्रतिनिधि के तौर पर मौलाना अबुल कलाम आजाद को शामिल किया गया। आजाद ने गीत को पढ़ा और पाया कि इसके शुरुआती दो छंद इस्लाम विरोधी नहीं हैं। उनके अनुसार, इन दो छंदों के बाद हिंदू देवी-देवताओं का उल्लेख है।

समिति के विचार-विमर्श के बाद एक फैसला लिया गया। नेहरू के नेतृत्व में कॉन्ग्रेस कार्यसमिति ने 26 अक्टूबर 1937 में एक लंबा बयान जारी कर इस गीत के टुकड़े कर दिए। फैसले के एक भाग को पढ़िए और समझिए:

“इसमें मुस्लिम बंधुओं का विरोध देख अपील की गई थी कि वंदे मातरम को आनंदमठ से अलग करके पढ़ा जाए और इसके केवल दो ही छंद इस्तेमाल हों, जिनमें हिंदू देवी-देवताओं का उल्लेख नहीं बल्कि मातृभूमि के सौन्दर्य और गुण की चर्चा है।”

वंदे मातरम को लेकर कॉन्ग्रेस ने जो फैसला लिया, उसका असर क्या हुआ? 5 छंद के गीत को काट कर सिर्फ 2 छंद कर देने से क्या मामला शांत हो गया? नहीं हुआ। बल्कि मुहम्मद अली जिन्ना जैसे कट्टरपंथी लोगों को और बल मिल गया। जिन्ना ने 1 मार्च 1938 को इस गीत के विरोध में फिर से एक मुहिम छेड़ा और द न्यू टाइम्स ऑफ लाहौर में लेख लिखा। कट्टरपंथी मुस्लिमों की भावनाओं को भड़काना, जिन्ना के कट्टरपंथी विचारों को कॉन्ग्रेस द्वारा पोषित किया जाना ही भारत के विभाजन का मुख्य कारण बना।

आजादी के बाद वंदे मातरम और कट्टरपंथी मुस्लिम

आजादी के बाद 2 छंदों वाले टुकड़े किए गए वंदे मातरम को ही 24 जनवरी 1950 को देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने राष्ट्रगीत घोषित किया। उन्होंने इस गीत को लेकर तब कहा था:

“वन्दे मातरम गीत, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है, को जन-गण-मन के समान सम्मानित किया जाएगा और इसे समान दर्जा दिया जाएगा।”

सवाल यह है कि इस गीत पर कैंची चलाने के बाद भी कॉन्ग्रेसी मुस्लिमों का तुष्टिकरण कर पाए? अव्वल दर्जे से असफल हुए… क्योंकि कट्टरपंथी मुस्लिमों को तो छोड़िए, मुस्लिम विधायक-सासंद भी वंदे मातरम नहीं गाते/बोलते हैं।

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NTN Staff August 11, 2023 August 11, 2023
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