शिवरात्रि पर प्रत्येक हिन्दू सोमनाथ-विध्वंस को याद करे। सोमनाथ हिन्दुओं के लिए देवालय ही नहीं, अपितु स्वयंबोध एवं शत्रुबोध का प्रमुख स्थल भी है। गज़नी का महमूद, हिन्दुओं से नहीं बल्कि हिन्दुओं के देव, महादेव से युद्ध करने निकला था। उसने सोमनाथ को खंडित किया और मंदिर के शिवलिंग को गजनी की जामा मस्जिद की सीढ़ियों में लगवा दिया, ताकि प्रत्येक मुसलमान शिवलिंग पर पैर रखकर मस्जिद में प्रवेश करे।
आश्चर्य है कि महमूद की मजहबी मानसिकता को जानते हुए भी हमारे देश के मक्कार इतिहासकारों ने हमें पढ़ाया कि वह तो केवल धन लूटने आया था। सोमनाथ की रक्षा में पचास हजार से अधिक हिन्दू पुरुषों ने अपने प्राणों की आहुति दी और जगह-जगह हिन्दू स्त्रियों ने जौहर किए। हिन्दू समाज अपने प्राणों का मूल्य जानता था। वह धन के लिए कभी इतना लालची नहीं रहा कि अपने प्राण त्याग दे। इसलिए, धन के लिए स्त्रियाँ अपने बच्चों सहित स्वयं को अग्नि में समर्पित कर रही थी – ऐसा विचार हास्यास्पद ही नहीं अपितु मूर्खतापूर्ण भी है।
महमूद के इतिहासकार अल-उतबी ने सोमनाथ विध्वंस पर लिखा है, “महमूद ने मंदिरों में मूर्तियों को तोड़कर इस्लाम की स्थापना की। नापाक कमीनो (हिन्दुओं) को मार डाला, मूर्ति-पूजकों को तबाह किया और मुस्लिमों को गौरवान्वित किया।”2 महमूद की फ़ौज का एक मात्र मकसद हिन्दू धर्म को समाप्त करना था। इसके लिए देवालयों का विध्वंस, पुरुषों की हत्या, स्त्रियों का बलात्कार एवं कमजोर हिन्दुओं का जबरन धर्मांतरण – ये उसके प्रमुख हथियार थे।
गज़नी के पहले कासिम ने जिस प्रकार से राजा दाहिर की हत्या के बाद सिंध की हिन्दू महिलाओं को निर्वस्त्र कर भोजन एवं मदिरा परोसने के लिए बाध्य किया और दाहिर की पुत्रियों को ख़लीफ़ा हज्जाज की भोग-दासी बनाने के लिए मजबूर किया, वह हिन्दू समाज के लिए इस्लामी मानसिकता का पहला परिचय था। हिन्दू समाज ने उस घटना को हल्के में लिया, नतीजतन हिन्दुओं को अपनी आँखों के सामने सोमनाथ को खंडित होते देखना पड़ा।
लेकिन, सोमनाथ-विध्वंस का एक सकारात्मक असर यह हुआ कि भारतीय समझ गए कि शत्रु कौन है और हिन्दू कौन है। सभी हिन्दू रजवाड़े, जैन, ब्राम्हण, व्यापारी, आदिवासी-भील, एक हो गए और चालुक्य राजा भीमदेव के साथ आ गए। भृगुकच्छ के दादा चालुक्य, जूनागढ़ के रत्नादित्य, कच्छ के कमा लखाणी, आबू के परमार, सिंध के जाट सभी ने महमूद के संहार को अपना परम मनोरथ समझ लिया। हिन्दुओं की इतनी बड़ी सेना के भय से महमूद मार्ग बदलकर मनशूरा से मुल्तान लौटा।
श्री सोमनाथ महादेव मंदिर,
प्रथम ज्योतिर्लिंग – गुजरात (सौराष्ट्र)
दिनांकः 18 फरवरी 2023, माघ कृष्ण त्रयोदशी(महा शिवरात्रि) – शनिवार
सायं शृंगार
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उस मार्ग में पानी व भोजन के अभाव में उसकी आधी सेना ने दम तोड़ दिया और शेष सैनिकों का सिंध के जाटों ने नरसंहार किया। भीमदेव ने पाटण पहुँचते ही मंदिर को पुनः बनवाकर भगवान सोमनाथ की स्थापना करने की आज्ञा दी। और कुछ महीनों में जिस प्रकार सतयुग में सोम ने, त्रेता में रावण ने और द्वापर में श्रीकृष्ण ने इस मंदिर का स्थापन किया था, उसी प्रकार चालुक्य-श्रेष्ठ ने वह कलयुग में कर दिखाया।सोमनाथ के इतिहास से शत्रुबोध होता है कि इस्लामियों का लक्ष्य सरकार बदलना नहीं, अपितु हिन्दू धर्म को समाप्त करना है।
उनके शत्रु हम नहीं हमारे महादेव हैं। इसी इतिहास से हमें स्वयंबोध भी होता है कि हम तब तक ही सुरक्षित हैं जबतक एक हैं। हम एक रहेंगे तो ना हमारी भूमि खंडित होगी, ना हमारे मंदिर, ना हमारे महादेव।