भारत में यात्राओं का लंबा इतिहास रहा है, या यूँ कहिए कि भारत का बहुत सारा इतिहास यात्राओं में छुपा हुआ है। जब चर्च और इस्लाम के संस्थापकों का जन्म भी नहीं हुआ था तब से कई विदेशी यात्री भारत की महान प्राचीनतम सभ्यता को जानने के लिए भारत की यात्रा करते रहे हैं। ईसा मसीह के जन्म से भी लगभग 300 वर्ष पहले, अर्थात आज से लगभग 2500 साल पहले यूनान के इतिहासकार मेगास्थनीज ने 302 से 298 ईसा पूर्व के बीच भारत की यात्रा की और इंडिका नामक पुस्तक में भारत के बारे में अपनी यात्रा का वर्णन लिखा।
इसके अलावा भी टॉल्मी (ग्रीस यात्री, 130 ईसवी), फाह्यान (चीन, 405 से 411 ईसवी), ह्वेनसांग (चीन, 630 से 645 ईसवी), इत्सिंग (चीन, 671 से 695 ईसवी), अलबरूनी (उज़्बेकिस्तान, 24 से 530 ईसवी) इब्नबतूता (मोरक्को, 1333 से 1347 ईस्वी) आदि अनेक यात्री कुछ न कुछ जानने की इच्छा लेकर भारत आते रहे। भारत को विश्व गुरु ऐसे ही नहीं कहा जाता, उसके पीछे एक समृद्ध विरासत है। मगर विडंबना देखिए कितनी आसानी से लिख दिया गया कि 1498 में वास्को ‘डी’ गामा ने भारत की खोज की थी।
यदि वास्कोडिगामा ने 1498 में भारत की खोज की थी तो ढाई हजार साल पहले मेगास्थनीज ने कौन से भारत की यात्रा की थी यह बात समझ से परे है। और भी क्या-क्या इतिहास के नाम पर पढ़ा दिया गया होगा यह शोध का विषय है। खैर छोड़िए, यह काम हम इतिहासकारों के लिए छोड़ दें। हम तो यात्रा की बात करते हैं। एक यात्रा अभी अभी खत्म हुई है। इसका नाम आप जानते ही हैं। पर मेरे अनुसार इस यात्रा का नाम ‘महाभारत से भारत जोड़ो’ यात्रा होना चाहिए। क्योंकि इस यात्रा से महाभारत के बारे में कई ऐसी बातें पता चलीं जो हम पहले नहीं जाते थे।
जैसे – पांडवों ने नोटबंदी नहीं की थी। पांडवों ने जीएसटी भी नहीं लगाया था। लगभग 5000 साल पहले पांडवों के साथ पता नहीं कौन से धर्म के पर सभी धर्मों के लोग रहते थे। यह सब बातें जानने के बाद ध्यान में आया कि पांडवों ने और भी बहुत सारे काम नहीं किए थे। जैसे पांडवों ने पाकिस्तान नहीं बनने दिया, बांग्लादेश नहीं बनने दिया, पांडवों ने धारा 370 भी नहीं लगाई, पांडवों ने पूजा स्थल कानून (Places of worship act 1991) भी नहीं बनाया जिससे हजारों मंदिरों पर अवैध कब्जा वैध हो गया, पांडवों ने संविधान में संशोधन करके ‘सेकुलर’ शब्द भी नहीं जोड़ा था।
लेकिन कोई बात नहीं, बाद में कुछ लोगों ने इन कामों को भी पूरा कर दिया। इस यात्रा से आपको और भी बहुत सी ज्ञान की बातें मिल सकती हैं। जैसे-कोरोना काल में कोरोना योद्धाओं पर फूल बरसाने से कोरोना नहीं भागता लेकिन टी शर्ट पहन कर भागने से बेरोजगारी कम हो जाती है। ताली-थाली बजाने से किसी का उत्साहवर्धन हो या ना हो लेकिन दाढ़ी बढ़ाने से महँगाई का बढ़ना बंद हो सकता है। दीपक जलाने से प्रकाश फैले या ना फैले लेकिन RSS को कोसने से नफरत फैलना बंद हो जाती है।
इस यात्रा के नेताओं ने बताया कि इस यात्रा में कुत्ते, सूअर, इंसान सभी आए किंतु कहीं कोई नफरत नहीं दिखाई दी। सही बात है कुत्ते, सूअर, इंसान सभी आए लेकिन गाय दिखाई नहीं दी। शायद उसके आने से नफरत फैल सकती थी या उसके गोबर से गंदगी फैल सकती थी। हो सकता है कि सेकुलरिज्म खतरे में पड़ जाता। लेकिन बीच सड़क पर बीफ (गौमांस) पार्टी करने वालों के साथ चलने से प्यार फैलता है। धर्मनिरपेक्षता बढ़ती है।
इस यात्रा के बहुत से सकारात्मक पहलू हैं। इस यात्रा से संदेश गया कि कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक भारत एक है। अच्छा हुआ धारा 370 को इस यात्रा से पहले ही हटा दिया गया था नहीं तो यह यात्रा कन्याकुमारी से जम्मू तक ही हो पाती। क्योंकि जिस स्थान पर तिरंगा फहरा कर इस यात्रा का सफलतापूर्वक समापन हो गया उस कश्मीर में तिरंगा फहराने के लिए मुखर्जी को अपना बलिदान देना पड़ा था। जब 370 समाप्त हुई तो कुछ लोगों ने मजाक में कहा कि कौन-कौन कश्मीर में प्लॉट लेगा अरे कोई प्लॉट ले या ना ले लेकिन लोग तिरंगा फहराने तो जा ही रहे हैं।
कम से कम गंदगी तो साफ हो रही है। काश देश समय रहते जागरूक होता तो यात्रा कन्याकुमारी से लाहौर तक होती, लेकिन तब हम अहिंसा की पूजा में व्यस्त थे। कुछ और पहले यात्रा होती तो शायद कन्याकुमारी से कंधार तक होती, लेकिन तब हम जातिवाद में व्यस्त थे। समय रहते यात्रा होती तो कन्याकुमारी से कैलाश मानसरोवर तक होती। लेकिन तब हम हिंदी चीनी भाई भाई के नारे में मग्न थे और कैलाश मानसरोवर पर चीन का कब्जा हो गया।
इस यात्रा से हमारी बहुत सारी भ्रांतियाँ दूर हुईं। जैसे- ‘अखंड भारत’ कहना सांप्रदायिकता है। ‘भारत जोड़ो’ कहना धर्मनिरपेक्षता है। जय श्री राम कहने से हिंसा फैल सकती है इसके स्थान पर जय सियाराम कहिए इससे गरीबी, बेरोजगारी, और महंगाई नियंत्रित होती है। खैर देर आए दुरुस्त आए। यात्रा सफलतापूर्वक संपन्न हुई। और देश को बहुत लाभ हुआ। बहुत-बहुत धन्यवाद! जय श्री राम